बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना
नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता
था कि ‘ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है। कभी-कभी हमें ऐसा
लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो
उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए
देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।’
एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद
न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, ‘‘देखो,
ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो
अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह
अच्छा किया है ?’’
कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, ‘‘मेरा अब भी यही
विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता
है।’’
सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को
इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों
ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।
तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर
बोले, ‘‘बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत
नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की
जाए।’’
बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, ’’ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा
अब।’’
तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल
में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों
में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास
रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब
पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।
‘‘नहीं, इस
आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।’’ मंदिर का पुजारी बोला, ‘‘यदि नौ उंगलियों वाले इस
आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे,
अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़
सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।’’
और उस दरबारी को मुक्त कर दिया
गया।
अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।
तभी
बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह
गए।
‘‘तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?’’ अकबर ने सवाल किया।
जवाब में उस
दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, ‘‘अब मुझे विश्वास हो गया है
कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न
कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन
ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर
विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।’’
अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते
हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा
था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।
छोटा बांस, बड़ा बांस
एक दिन अकबर व बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहा था और अकबर उसका
मजा ले रहे थे। तभी अकबर को नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। उन्हें
बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।
बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले,
‘‘क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?’’
बीरबल लतीफा
सुनाता-सुनाता रुक गया और अकबर की आंखों में झांका।
अकबर कुटिलता से मुस्कराए,
बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।
अब जैसा
बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था।
बीरबल ने इधर-उधर
देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था।
उसके पास जाकर बीरबल ने वह
बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ
में।
बीरबल बोला, ‘‘हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही
छोटा।’’
बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।
निरुत्तर बादशाह
अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।
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रेत से चीनी अलग करो
बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थी, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक
मर्तबान लिए वहां आया।
‘‘क्या है इस मर्तबान में ?’’ पूछा बादशाह ने।
वह
बोला, ‘‘इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।’’
‘‘वह किसलिए ?’’ फिर पूछा अकबर
ने।
‘‘माफी चाहता हूँ हुजूर,’’ दरबारी बोला, ‘‘हम बीरबल की काबलियत को परखना
चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।’’
बादशाह अब
बीरबल से मुखातिब हुए, ‘‘देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी
जाती है।’’ वह मुस्कराए और आगे बोले, ‘‘तुम्हें बिना पानी में घोले इस रेत में से
चीनी को अलग करना है।’’
‘‘कोई समस्या नहीं जहांपना,’’ बोला बीरबल, ‘‘यह तो मेरे
बाएं हाथ का काम है।’’ कहकर बीरबल ने वह मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर।
बाकी दरबारी भी पीछे थे। बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान से भरा सारा मिश्रण
आम के एक बड़े पेड़ के चारों ओर बिखेर दिया।
‘‘यह तुम क्या कर रहे हो ?’’ एक
दरबारी ने पूछा।
बीरबल बोला, ‘‘यह तुम्हें कल पता चलेगा।’’
अगले दिन फिर वे
सभी उस आम के पेड़ के निकट जा पहुंचे। वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने
चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के
दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं।
‘‘लेकिन सारी चीनी कहां चली गई ?’’ पूछा
एक दरबारी ने।
‘‘रेत से अलग हो गई।’’ बीरबल ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा।
सभी जोरों से हंस पड़े।
बादशाह अकबर को जब बीरबल की चतुराई ज्ञात हुई तो बोले,
‘‘अब तुम्हें चीनी ढूंढ़नी है तो चीटियों के बिल में घुसना होगा।’’
सभी
दरबारियों ने जोरदार ठहाका लगाया और बीरबल का गुणगान करने लगे।
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बीरबल कहां मिलेगा
एक दिन बीरबल बाग में टहलते हुए सुबह की ताजा हवा का आनंद ले रहा था कि अचानक एक
आदमी उसके पास आकर बोला, ‘‘क्या तुम मुझे बता सकते हो कि बीरबल कहां मिलेगा
?’’
‘‘बाग में।’’ बीरबल बोला।
वह आदमी थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर संभलकर बोला,
‘‘वह कहां रहता है ?’’
‘‘अपने घर में।’’ बीरबल ने उत्तर दिया।
हैरान-परेशान
आदमी ने फिर पूछा, ‘‘तुम मुझे उसका पूरा पता ठिकाना क्यों नहीं बता देते
?’’
‘‘क्योंकि तुमने पूछा ही नहीं।’’ बीरबल ने ऊंचे स्वर में कहा।
‘‘क्या तुम
नहीं जानते कि मैं क्या पूछना चाहता हूं ?’’ उस आदमी ने फिर सवाल किया।
‘‘नहीं।’
बीरबल का जवाब था।
वह आदमी कुछ देर के लिए चुप हो गया, बीरबल का टहलना जारी था।
उस आदमी ने सोचा कि मुझे इससे यह पूछना चाहिए कि क्या तुम बीरबल को जानते हो ? वह
फिर बीरबल के पास जा पहुंचा, बोला, ‘‘बस, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या तुम बीरबल
को जानते हो ?’’
‘‘हां, मैं जानता हूं।’’ जवाब मिला।
‘‘तुम्हारा क्या नाम है
?’’ आदमी ने पूछा।
‘‘बीरबल।’’ बीरबल ने उत्तर दिया।
अब वह आदमी भौचक्का रह
गया। वह बीरबल से इतनी देर से बीरबल का पता पूछ रहा था और बीरबल था कि बताने को
तैयार नहीं हुआ कि वही बीरबल है। उसके लिए यह बेहद आश्चर्य की बात थी।
‘‘तुम भी
क्या आदमी हो...’’ कहता हुआ वह कुछ नाराज सा लग रहा था, ‘‘मैं तुमसे तुम्हारे ही
बारे में पूछ रहा था और तुम न जाने क्या-क्या ऊटपटांग बता रहे थे। बताओ, तुमने ऐसा
क्यों किया ?’’
‘‘मैंने तुम्हारे सवालों का सीधा-सीधा जवाब दिया था, बस
!’’
अंततः वह आदमी भी बीरबल की बुद्धि की तीक्ष्णता देख मुस्कराए बिना न रह
सका।
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बादशाह का सपना
एक रात सोते समय बादशाह अकबर ने यह अजीब सपना देखा कि केवल एक छोड़कर उनके बाकी सभी
दांत गिर गए हैं।
फिर अगले दिन उन्होंने देश भर के विख्यात ज्योतिषियों व
नुजूमियों को बुला भेजा और और उन्हें अपने सपने के बारे में बताकर उसका मतलब जानना
चाहा।
सभी ने आपस में विचार-विमर्श किया और एक मत होकर बादशाह से कहा,
‘‘जहांपनाह, इसका अर्थ यह है कि आपके सारे नाते-रिश्तेदार आपसे पहले ही मर
जाएंगे।’’
यह सुनकर अकबर को बेहद क्रोध हो आया और उन्होंने सभी ज्योतिषियों को
दरबार से चले जाने को कहा। उनके जाने के बाद बादशाह ने बीरबल से अपने सपने का मतलब
बताने को कहा।
कुछ देर तक तो बीरबल सोच में डूबा रहा, फिर बोला, ‘‘हुजूर, आपके
सपने का मतलब तो बहुत ही शुभ है। इसका अर्थ है कि अपने नाते-रिश्तेदारों के बीच आप
ही सबसे अधिक समय तक जीवित रहेंगे।’’
बीरबल की बात सुनकर बादशाह बेहद प्रसन्न
हुए। बीरबल ने भी वही कहा था जो ज्योतिषियों ने, लेकिन कहने में अंतर था। बादशाह ने
बीरबल को ईनाम देकर विदा किया।
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कवि और धनवान आदमी
एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस
उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह
धनवान भी महाकंजूस था, बोला, ‘‘तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर
आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।’’ ‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता
हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा।
धनवान बोला, ‘‘सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था,
उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं
भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।’’
कवि बेहद निराश हो गया। उसने
अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल
बोला, ‘‘अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर
अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद
रहूंगा ही।’’ कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को
भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि
और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का
कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की
बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘‘भोजन का समय तो कब का
हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?’’ ‘‘खाना, कैसा खाना ?’’ बीरबल ने
पूछा। धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे
यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?’’ ‘‘खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको
खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।’’ जवाब बीरबल ने दिया।
धनवान का
पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘‘यह सब क्या है? इस तरह
किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया
है।’’ अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो...।
तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया।
तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’’ धनवान को अब अपनी गलती का
आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली। वहां मौजूद सभी बीरबल
को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे।
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