कौवे के रंग के बारे में एक पुरानी किवदंती है। एक ऋषि ने कौए को अमृत खोजने भेजा, लेकिन उन्होंने यह इत्तला भी दी कि सिर्फ अमृत की जानकारी ही लेना है, उसे पीना नहीं है।
एक बरस के परिश्रम के पश्चात सफेद कौए को अमृत की जानकारी मिली, पीने की लालसा कौआ रोक नहीं पाया एवं अमृत पी लिया। ऋषि को आकर सारी जानकारी दी।
इस पर ऋषि आवेश में आ गए और श्राप दिया कि तुमने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच द्वारा पवित्र अमृत को भ्रष्ट किया है। इसलिए प्राणी मात्र में तुम्हें घृणास्पद पक्षी माना जाएगा एवं अशुभ पक्षी की तरह मानव जाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी, लेकिन चूंकि तुमने अमृत पान किया है, इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु कभी नहीं होगी। कोई बीमारी भी नहीं होगी एवं वृद्धावस्था भी नहीं आएगी।
भाद्रपद के महीने के 16 दिन तुम्हें पितरों का प्रतीक समझ कर आदर दिया जाएगा एवं तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी।
इतना बोलकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डूबो दिया। काले रंग का बनकर कौआ उड़ गया तभी से कौए काले हो गए।
इस पर ऋषि आवेश में आ गए और श्राप दिया कि तुमने मेरे वचन को भंग कर अपवित्र चोंच द्वारा पवित्र अमृत को भ्रष्ट किया है। इसलिए प्राणी मात्र में तुम्हें घृणास्पद पक्षी माना जाएगा एवं अशुभ पक्षी की तरह मानव जाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी, लेकिन चूंकि तुमने अमृत पान किया है, इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु कभी नहीं होगी। कोई बीमारी भी नहीं होगी एवं वृद्धावस्था भी नहीं आएगी।
भाद्रपद के महीने के 16 दिन तुम्हें पितरों का प्रतीक समझ कर आदर दिया जाएगा एवं तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी।
इतना बोलकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डूबो दिया। काले रंग का बनकर कौआ उड़ गया तभी से कौए काले हो गए।