सम्राट अकबर कभी जरूरत से, कभी मनोरंजन के लिए बीरबल से कठिन प्रश्न करता।
एक दिन बादशाह ने पूछा- 'तुम्हें तीक्ष्ण बुद्धि कहां से मिली?'
बीरबल- 'जहांपनाह, यह मुझे मूर्खों से मिली है!'
प्रश्न जितना सरल, उत्तर उतना ही ज्यादा उलझन और चक्कर में डालने वाला, हैरान करने वाला! मूर्ख के पास तो बुद्धि होती ही नहीं, बुद्धि होती तो वे मूर्ख क्यों कहलाते। और जो चीज जिसके पास में नहीं है, उसे वे कैसे दूसरे को दे सकते हैं? अत: अकबर से रहा नहीं गया।
बादशाह अकबर ने पूछा- 'मूर्खों से?'
बीरबल- 'हां! मूर्खों से।' जिस आचरण और व्यवहार के कारण आदमी मूर्ख कहलाता है, मैं उनसे बचता रहा। इससे मेरा बुद्धिमान बनने का रास्ता साफ होता गया।'
एक दिन बादशाह ने पूछा- 'तुम्हें तीक्ष्ण बुद्धि कहां से मिली?'
बीरबल- 'जहांपनाह, यह मुझे मूर्खों से मिली है!'
प्रश्न जितना सरल, उत्तर उतना ही ज्यादा उलझन और चक्कर में डालने वाला, हैरान करने वाला! मूर्ख के पास तो बुद्धि होती ही नहीं, बुद्धि होती तो वे मूर्ख क्यों कहलाते। और जो चीज जिसके पास में नहीं है, उसे वे कैसे दूसरे को दे सकते हैं? अत: अकबर से रहा नहीं गया।
बादशाह अकबर ने पूछा- 'मूर्खों से?'
बीरबल- 'हां! मूर्खों से।' जिस आचरण और व्यवहार के कारण आदमी मूर्ख कहलाता है, मैं उनसे बचता रहा। इससे मेरा बुद्धिमान बनने का रास्ता साफ होता गया।'
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