Sunday, January 31, 2016

बन्दर और मगरमच्छ

एक नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ पर एक बन्दर रहता था जिसकी मित्रता उस नदी में रहने वाले मगरमच्छ के साथ हो गयी |वह बन्दर उस मगरमच्छ को भी खाने के लिए जामुन देता रहता था |एकदिन उस मगरमच्छ ने कुछ जामुन अपनी पत्नी को भी खिलाये | स्वादिष्ट जामुन खाने के बाद उसने यह सोचकर कि रोज़ाना ऐसे मीठे फल खाने वाले का दिल भी खूब मीठा होगा ;अपने पति से उस बन्दर का दिल लाने की ज़िद्द की | पत्नी के हाथों मजबूर हुए मगरमच्छ ने भी एक चाल चली और बन्दर से कहा कि उसकी भाभी उसे मिलना चाहती है इसलिए वह उसकी पीठ पर बैठ जाये ताकि सुरक्षित उसके घर पहुँच जाए |बन्दर भी अपने मित्र की बात का भरोसा कर, पेड़ से नदी में कूदा और उसकी पीठ पर सवार हो गया |जब वे नदी के बीचों-बीच पहुंचे ; मगरमच्छ ने सोचा कि अब बन्दर को सही बात बताने में कोई हानि नहीं और उसने भेद खोल दिया कि उसकी पत्नी उसका दिल खाना चाहती है |बन्दर को धक्का तो लगा लेकिन उसने अपना धैर्य नहीं खोया और तपाक से बोला –‘ ओह, तुमने, यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई क्योंकि मैंने तो अपना दिल जामुन के पेड़ की खोखल में सम्भाल कर रखा है |अब जल्दी से मुझे वापिस नदी के किनारे ले चलो ताकि मैं अपना दिल लाकर अपनी भाभी को उपहार में देकर; उसे खुश कर सकूं |’ मूर्ख मगरमच्छ बन्दर को जैसे ही नदी-किनारे ले कर आया ;बन्दर ने ज़ोर से जामुन के पेड़ पर छलांग लगाई और क्रोध में भरकर बोला –“अरे मूर्ख ,दिल के बिना भी क्या कोई ज़िन्दा रह सकता है ? जा, आज से तेरी-मेरी दोस्ती समाप्त |”

मित्रो ,बचपन में पढ़ी यह कहानी आज भी मुसीबत के क्षणों में धैर्य रखने की प्रेरणा देती है ताकि हम कठिन समय का डट कर मुकाबला कर सकें | दूसरे, मित्रता का सदैव सम्मान करें 

पंचतंत्र की कहानियों का इतिहास


पञ्चतंत्र की ये कहानियाँ कब और क्यों लिखीं गईं ,इसके पीछे एक अत्यंत रोचक इतिहास है | कहते हैं कि प्राचीन काल में पाटलीपुत्र में ; जो आज पटना के नाम से विख्यात है, एक सुदर्शन नाम का अत्यंत गुणी राजा राज्य करता था |एक दिन उस राजा ने किसी कवि के द्वारा पढ़े जाते हुए दो श्लोक सुने जिनका भाव कुछ इस प्रकार था:

–१. शास्त्र अर्थात् ज्ञान ही मानव के वास्तविक नेत्र होते हैं क्योंकि ज्ञान के द्वारा ही हमारे समस्त संशयों एवं भ्रमों का छेदन किया जा सकता है ;सत्य एवं तथ्य का परिचय भी ज्ञान के ही माध्यम से सम्भव हुआ करता है तथा अपनी क्रियायों के भावी परिणाम का अनुमान भी हम केवल अपने ज्ञान के द्वारा ही लगा सकते हैं

|२.यौवन का झूठा घमण्ड ,धन-सम्पत्ति का अहंकार ,प्रभुत्त्व अर्थात् सब को अपने आधीन रखने की महत्त्वाकांक्षा तथा अविवेकिता यानि कि सही और गलत के बीच अंतर को न पहचानना—इन चारों में से एक का भी यदि हम शिकार बन गये तो जीवन व्यर्थ होने की पूरी-पूरी सम्भावना होती है; और फिर जहाँ ये चारों ही एक साथ हों तो फिर तो कहना ही क्या !

राजा ने जैसे ही ये श्लोक सुने , तो उसे अपने नित्य कुमार्ग पर चलने वाले और क

“दिमाग की रीसाइक्लिंग”

"दिमाग की रीसाइक्लिंग"

Accha Padosi

"पड़ोसी"

Wednesday, January 27, 2016

भाग्य से ज्यादा और समय से पहले, न किसी को मिला है और न मिलेगा।

एक सेठ जी थे जिनके पास काफी दौलत थी और सेठ जी ने उस धन से निर्धनों की सहायता की, अनाथ आश्रम एवं धर्मशाला आदि बनवाये। इस दानशीलता के कारण सेठ जी की नगर में काफी ख्याति थी। सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी, सट्टेबाज निकल गया जिससे सब धन समाप्त हो गया। बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो। सेठ जी कहते कि भाग्यवान जब तक बेटी-दामाद का भाग्य उदय नहीं होगा तब तक मैं उनकी कीतनी भी मदद भी करूं तो भी कोई फायदा नहीं। जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे। परन्तु मां तो मां होती है, बेटी परेशानी में हो तो मां को कैसे चैन आयेगा। इसी सोच-विचार में सेठानी रहती थी कि किस तरह बेटी की आर्थिक मदद करूं। एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया। सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये जिससे बेटी की मदद भी हो जायेगी और दामाद को पता भी नही चलेगा। यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अर्शफिया थी वह दामाद को दिये। दामाद लड्डू लेकर घर से चला। दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें। और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया।

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया जो उनके दामाद को उसकी सास ने दिया थे। सेठ जी लड्डू लेकर घर आये सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया। सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात सेठ जी से कह डाली। सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा। देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में।

  इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा।