आलसी सदैव सपनों की दुनियां में ही जीता है। ऐसे ही एक गांव में रहने वाले पति-पत्नी दिन में सपने देखा करते थे और अपने बुने सपनों में इस कदर खो जाते थे कि आस-पडोस के सभी लोग उनका तमाशा देखा करते थे।
एक दिन पति ने कहा- मेरे पास कुछ रुपये होते तो मैं एक दुधारू गाय खरीदता। पत्नी बोली- गाय घर में हो तो उसके दुध के लिए हण्डीयां भी जरूरी होनी चाहिए। अगले दिन वह कुम्हार के यहां से पांच हण्डीयां ले आयी। पति ने पुछा क्यों खरीद लायी ? ओह! ये कुछ हण्डीयां, एक दुध के लिए, एक छाछ के लिए, एक मख्खन के लिए, और एक घीं के लिए। बहुत खुब और पाचंवी का क्या करोगी?
पत्नी ने कहा- इसमें अपनी बहन को थोडा दुध भेजूंगी। क्या? अपनी बहन को दुध भेजेगी ? ऐसा कब से चल रहा है ? मुझसे पुछा तक नहीं ? पति गुस्से से चिल्लाया और सारी हण्डीयां तोड दी। पत्नी ने पलट कर जवाब दिया- मैं गायों की देखभाल करती हूं, उन्हें धोती हूं, बचे हुए दुध का क्या करू ? यह मेरी मर्जी। निकम्मी स्त्री मैं दिनभर हाडतोड मेहनत करके गाय खरीदता हूं और तू उसका दुध अपनी बहन को देती हैं मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा।
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पति गुर्राया और पत्नी पर बर्तन-भांडे फेंकने लगा। आखिर उनके पडोसी से रहा नहीं गया। वह उनके घर गया और भोलेपन से पूछा क्या बात है ? बर्तन भांडे क्यों फेंके जा रहे है। ? ससुरी अपनी बहन को हमारी गाय का दुध भिजवाती है।
पडोसी – तुम्हारी गाय ?
हाँ! पैसों का जुगाड होते ही मैं एक गाय खरीदने वाला हूं।
पडोसी ने कहा- अच्छा वह गाय पर अभी तो तुम्हारें पास कोई गाय नही है या है ?
पडोसी ने कहा- कुछ ही दिनों की बात है, मैं गाय जरूर लाउंगा।
ओह! यह बात हैं अब मुझे पता चला कि मेरी सब्जीयों की बाडी कौन बर्बाद करता है ? कहते हुए पडोसी ने एक लाठी उठाई और उसे मारने के लिए लपका।
ठहरो, ठहरों मुझे क्यो मारते हो ? तुम्हारी गाय मेरे मटर और खीरे खा गयी, तुम उसे बांधते क्यों नही?
कैसे मटर? कैसे खीरे ? तुम्हारी सब्जीयों की बाडी है कहाँ ?
वही जिसकी मैं बुवाई करने वाला हूं। मैं महीनों से उसके बारे में सोच रहा हूं। तुम्हारी गाय उसे तहस-नहस कर जाती है।
पति, पत्नी को उनकी हरकतों का सही जवाब देने वाला मिल गया था। उसके बाद उन्होने कभी दिन में सपने नहीं देखे।
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एक दिन पति ने कहा- मेरे पास कुछ रुपये होते तो मैं एक दुधारू गाय खरीदता। पत्नी बोली- गाय घर में हो तो उसके दुध के लिए हण्डीयां भी जरूरी होनी चाहिए। अगले दिन वह कुम्हार के यहां से पांच हण्डीयां ले आयी। पति ने पुछा क्यों खरीद लायी ? ओह! ये कुछ हण्डीयां, एक दुध के लिए, एक छाछ के लिए, एक मख्खन के लिए, और एक घीं के लिए। बहुत खुब और पाचंवी का क्या करोगी?
पत्नी ने कहा- इसमें अपनी बहन को थोडा दुध भेजूंगी। क्या? अपनी बहन को दुध भेजेगी ? ऐसा कब से चल रहा है ? मुझसे पुछा तक नहीं ? पति गुस्से से चिल्लाया और सारी हण्डीयां तोड दी। पत्नी ने पलट कर जवाब दिया- मैं गायों की देखभाल करती हूं, उन्हें धोती हूं, बचे हुए दुध का क्या करू ? यह मेरी मर्जी। निकम्मी स्त्री मैं दिनभर हाडतोड मेहनत करके गाय खरीदता हूं और तू उसका दुध अपनी बहन को देती हैं मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा।
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पति गुर्राया और पत्नी पर बर्तन-भांडे फेंकने लगा। आखिर उनके पडोसी से रहा नहीं गया। वह उनके घर गया और भोलेपन से पूछा क्या बात है ? बर्तन भांडे क्यों फेंके जा रहे है। ? ससुरी अपनी बहन को हमारी गाय का दुध भिजवाती है।
पडोसी – तुम्हारी गाय ?
हाँ! पैसों का जुगाड होते ही मैं एक गाय खरीदने वाला हूं।
पडोसी ने कहा- अच्छा वह गाय पर अभी तो तुम्हारें पास कोई गाय नही है या है ?
पडोसी ने कहा- कुछ ही दिनों की बात है, मैं गाय जरूर लाउंगा।
ओह! यह बात हैं अब मुझे पता चला कि मेरी सब्जीयों की बाडी कौन बर्बाद करता है ? कहते हुए पडोसी ने एक लाठी उठाई और उसे मारने के लिए लपका।
ठहरो, ठहरों मुझे क्यो मारते हो ? तुम्हारी गाय मेरे मटर और खीरे खा गयी, तुम उसे बांधते क्यों नही?
कैसे मटर? कैसे खीरे ? तुम्हारी सब्जीयों की बाडी है कहाँ ?
वही जिसकी मैं बुवाई करने वाला हूं। मैं महीनों से उसके बारे में सोच रहा हूं। तुम्हारी गाय उसे तहस-नहस कर जाती है।
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