Sunday, August 18, 2013

इंसानियत अभी ज़िंदा है

एक साधू हाथ में चिमटा और कमंडल, बगल में सुन्दर सा बण्डल !
देखने आये दशहरे का मेला, लालबत्ती पर पुलिस सिपाही अकेला,
बीचों बीच सड़क के खडा था फलों का ठेला !
पुलिस वाले ने डंडा बजाया, ठेलेवाला हदबदाया !
पुलिस वाला -
“निकाल सौ का नोट” नहीं तो पड़ेगी सर पर चोट” !
ठेलेवाला – “थानेदार साहब सुबह सुबह हो गया काण्ड,
रेडी से केले खा गया एक बिगड़ा सांड !
अभी तो बूणी भी नहीं कर पाया,
पहला ग्राहक ये बिगड़ा सांड आया !
केला खाया सो खाया,
हल्का सींघ जोर का लगाया,
अभी परसों ही आपको सौ दिया था,
पांच सौ महीने के दूंगा, वादा किया था,
अब तो हफ्ते में ही पांच सौ मांग रहे हो,
बिना कसूर सूली पे टांग रहे हो,
कुछ देर में एमसीडी वाले आएँगे,
कुछ न कुछ उठा ले जाएंगे,
बताइए इस तरह हम कैसे जी पाएंगे,
बीबी है बच्चे हैं, वो क्या खाएंगे !
पुलिस वाला :-
तेरी बीबी बच्चों से मुझे क्या लेना देना है,
तेरे से एक करार सौ का नोट लेना है !
फिर रेडी से दो लाल सेब निकाले,
सौ रूपये छीन के जेब में डाले,
दूर खडा साधू नजदीक आया,
पुलिस वाले को पहचान पत्र दिखाया,
आईडी देखते ही पुलिस वाले के हुए होश गुम,
भागना चाहता था दबा के दुम,
लेकिन भाग नहीं पाया,
साधू ने उसे हथकड़ी लगाया !
पुलिस वाले से रिश्वत के तीन हजार
रेडी वाले की भरपाई के दिए,
साधू क्राईम ब्रांच का इन्स्पेक्टर था,
साधू बना गरीबों की भलाई के लिए !
इस तरह ईमानदार इन्स्पेक्टर ने रचाया खेल,
एक भ्रष्ट पुलिस वाले को पहुंचाया जेल !
जहां रेल, कोयला भ्रष्ट मंत्रियों की हो रही है निंदा,
कुछ तो ईमानदार लोग हैं इंसानियत है ज़िंदा !

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