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भारत में नेत्रहीनों के लिए कई विशेष स्कूल हैं और अब तो ऊँची कक्षाओं में भी ब्रेल लिपि में किताबें उपलब्ध होने लगी हैं। गैरसरकारी संस्था नेशनल फेडेरशन ऑफ ब्लाइंड (एनएफबी) नेत्रहीनों के लिए किताबों का प्रकाशन और संग्रह करती है।
संस्था में कापीहोल्डर शिवपराग सिंह ने कहा, ‘विज्ञान और गणित की किताबें अब ऊँची कक्षाओं के लिए भी उपलब्ध होने लगी हैं। पहले अधिकतर नेत्रहीन आठवीं कक्षा तक ही पढ़ पाते थे जो अब किताबों की उपलब्धता के कारण 10वीं और आगे तक पढाई कऱने में भी सक्षम हैं।’ सिंह ने कहा कि कंप्यूटर में कार्य होने से विशेष कोड की संख्या बढ़ चुकी है। इन विशेष कोड में विशेष कैरेक्टरों का बड़ा संग्रह होता है जिनसे पुस्तकें तैयार होती हैं। इससे अब विविध विषयों में किताबें भी उपलब्ध होने लगी हैं।
उन्होंने कहा, ‘भारत की महत्वाकांक्षी शिक्षा परियोजना सर्व शिक्षा अभियान में भी नेत्रहीन बच्चों के लिए शिक्षा देने की व्यवस्था है। उनके लिए ब्रेल में किताबें तैयार की जा रही हैं।’ इस परिसंघ में 25 हजार से अधिक सदस्य हैं और इसे विश्व नेत्रहीन संघ की मान्यता प्राप्त है।
लुई के स्कूल में कुल 14 किताबें थी और उन्होंने सारी पढ़ डालीं। उन्होंने महसूस किया कि नेत्रहीनों की पढ़ाई में काफी परेशानियाँ हैं। इसके बाद उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया कि नेत्रहीनों के लिए ऐसी व्यवस्था बनानी है जिससे वे अपनी उंगली की मदद से पढ़ सके।
उन्होंने छह बिंदुओं (डाट्स) की मदद से ऐसी वर्णमाला बनाई जिसे छूकर नेत्रहीन भी पढ़ सकते थे। पूरे विश्व में इस विशेष वर्णमाला में कई किताबें आ चुकी हैं।
एनएफबी में कार्यरत अतुल ने कहा कि पहले ब्रेल में किताबों को तैयार करने का काम हाथ से होता था लेकिन कंप्यूटर आने के बाद से पुस्तकों के प्रकाशन में तेजी आई है।
सिंह ने कहा कि इन विशेष प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन और संग्रह में नेत्रहीन भी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। प्रूफ रीडर का काम तक वह देख सकते हैं। दिन प्रति दिन प्रगति से नेत्रहीनों का स्वावलंबन बढ़ता जा रहा है।
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