Monday, December 30, 2013

EK RAJA KI KAHANI (PER KISI NA JAANI)

राजस्थान में एक छोटी सी स्टेट ,उसके राजा की कहानी ,अचानक राजा का स्वर्गवास ,पीछे छोड़ गए करोड़ों की संपत्ति ,उसको संभालने हेतु एक पुत्तर ,जो केवल पहलवानी करता और एश करता था ,वो सभी प्रकार के शौक करता था ,परन्तु राज काज सभालने में उसकी कोई रूचि ना थी ,उसका सबसे प्रिय शौक था गैम्बलिंग ,उसके बिना वो एक पल भी नहीं रह सकता था ,शादी उनकी हो चुकी थी ,उनके टोटल चार बच्चे थे ,जिनमे तीन पुत्र और एक पुत्री थी ,धीरे-धीरे काफी संपत्ति ,जिनमे बाग़ बगीचे ,हाथी घोडे ,और पैसा गैम्बलिंग की भेंट चढ़ चुका था ,अचानक एक रात रानी को स्वप्न आया ,कोई कह रहा था की तुम नींद का मजा ले रही हो और तुम्हारा राजा सब कुछ जुए की भेंट कर चुका है ,तू और तेरे बच्चे राजा से भिखारी बन चुके हैं ,अभी भी समय है जो कुछ बचा है उसे संभाल ,अचानक रानी झटके से उठी और सबसे पहले उसने अपने चारों बच्चों को गौर से देखा ,यद्दपि रानी बहुत समझदार थी पर लोक लाज के भय के कारण वो चुप रहती थी ,दिन निकला रानी ने राजा से सपना कहा और अपनी जिज्ञासा बतायी की कहीं स्वप्न सही तो नहीं है ,स्वप्न सही निकला अब वो कंगाल हो चुके थे ,अब कुछ बचा था तो केवल कुछ बीघा जमीन और एक छोटा सा महल ,रानी ने राजा को कुछ भला बुरा कहा तो राजा घर छोड़ कर चला गया ,अब रानी ने अपनी बुद्धि के बल पर अपने बच्चो को पदाया तो सही पर उस समय मैं कभी कभी रातों को फाके भी करने पड़े ,अचानक एक ऐसी रात को रानी ने देखा ,की बड़ा बेटा रो रहा था ,रानी ने पूछा की वो क्योँ रो रहा है ,उसने बताया की मैं अपने छोटे भाइयों व बहन को भूखा नहीं देख सकता ,इस लिए मेने निर्णय लिया है की मैं अब नही पडूंगा और कहीं बाहर जाकर मजदूरी करके भाई बहन का पालन पोषण करूंगा ,अगले ही दिन बड़ा लड़का दिल्ली को चल दिया
दिल्ली आकर उसको बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा ,जेब के पैसे ख़त्म हो गए रात को सोने के लिए जगह नहीं थी ,पार्कों में या दुकानों के आगे पड़ी जगह पर सोना पड़ता था ,अचानक उसे एक और अपने जैसा लड़का मिला जो उसे अपने कमरे पर ले गया ,इस तरह रात को सोने की समस्या का समाधान हो गया , अब वो दोनों रोजाना नौकरी की तलाश में निकलते ,नौकरी तो ना मिलती पर कहीं ना कहीं मजदूरी अवश्य मिल जाती जेसे की रेलवे वेंगन से पत्थर उतारना ,सफेदी करना ,इंट गारे का काम आदि -आदि किसी ना किसी तरह जुगाड़ करके रोटी पानी का खर्चा निकाल कर जो कुछ बचता राजा का बेटा अपने घर छोटे भाई बहनों को भेज देता ,कितनी ही बार रात को काम से लौटते वक्त उसको पुलिश वाले भी पकड़ लेते थे ,पर जब वो अपनी कहानी उनको सुनाता तो वो छोड़ देते थे ,इसी दौरान वो कुछ असाम्म्जिक तत्वों के संपर्क मे भी आ गया उन लोगों ने उसे भी तरह -तरह के लालच देकर अपने संलिप्त कार्यौं में लगाना चाहा ,कार्य थे जेसे कच्ची शराब बेचना ,अफीम बेचना ,किसी की भी जगह घेर लेना ,पोकित मारी ,उसे यातनाएं भी दी गयीं पर वो तेयार नही हुआ उनमे एक बन्दा कुछ समझदार सा लगा उसने अपनी कहानी उसे सुनाई वो काफी द्रवित हुआ और उसने उसी रात को उसे भगा दीया
और वो रात को ही पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर अपनी स्टेट(गाँव)चला गया ,वहाँ जाकर देखा की सभी घरवाले परेशान थे क्योंकि उनके पास जो पैसे थे वो ख़त्म हो चुके थे ,खैर उसकी जेब में चार पाँच सौ रूपये थे ,सोउसने वो पैसे अपनी माँ को दे दिए ,दो चार दिन गाँव में रहकर जो देखा और सूना वो बहुत ही दर्दनिया था कोई कहता था की कंगले हो गए हैं पर अकड़ राजाओं जेसी ही है ,रस्सी जल गई पर बल नहीं गए ,माँ भाई बहन सब दुखी हैं और सूना है ये साहब कहीं दिल्लीमें मजे से रह रहे हैं ,कोई कहता बेचारे गरीब है ,कोई कहता दादा परदादा के कर्मों का फल भोग रहे है ,यानी गाँव में अगर कोई गरीब था तो केवल ये राजपरिवार ,राजपरिवार के जो नोकर चाकर थे जैसे की नाइ ,धोबी यानी छोटे से छोटा व्यक्ति भी इस परिवार को गरीब कहकर संबोधित कर रहा था ,अतत इस गरीबी के अभिशाप को मिटाने की शपथ लेकर वापस दिल्ली को चल दिया दिल्ली आकर उसने जोर शोर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी ,उसे जो भी नौकरी मिली करता रहा कुछ ख़ुद खा पी जाता और अधिक से अधिक रुपया बचाकर घर भेज देता क्यों की छोटे भाई बहनों को शिक्षा भी दिलवानी थी ,दो तीन वर्ष धक्के खाने के बाद एक बहुत अच्छी कंपनी में काम मिल गया जहाँ पर भी तनखा भी अच्छी मिलती थी और पोस्ट भीमैनेजर की थी ,अब वो घर को पैसे भेजने के साथ -साथ कुछ सेविंग भी बैंक में करने लगा ,उसने तीन वर्ष नौकरी करने के समय में लगभग बीस हजार रुपया भी जोड़ा ,उस क्षेत्र के व्यापारियों से अच्छे रसूख बनाये ,अपनी अच्छी इमेज ,गुड विल बनायी जिससे की चारों तरफ उसकी प्रसिद्दि हो गयी लोग उसे इमानदार और जुबान का पाबन्द व्यक्ति मानने लगे ,इसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ की व्यापारी उसकी जुबान पर लाखौं का व्यापार उससे करने लगे ,जब उसे लगा की वो अपने क्षेत्र में परिपक्व हो चुका है तो उसने नौकरी छोड़ दी और छोटा मोटा व्यापार उसी क्षेत्र में करना शुरू कर दीया ,यद्दपि बिजिनस सही प्रकार चल रहा था पर वो तो जल्दी से जल्दी हवा में उड़कर ,गरीबी के अभिशाप को मिटाकर फ़िर राजाओं वाली पदवी पर पहुंचना चाहता था सो इश्वर की क्रपा से तभी पैसा लगाने वाला एक और पार्टनर मिल गया
उस पार्टनर के साथ मिलकर उसने व्यापार शुरू कर दिया ,भगवान् की किरपा से व्यापार चल निकला दिन दूनी रात चौगनी तरक्की होने लगी ,लाखौं रूपये माह की इनकम होने लगी ,खर्चे काटकर उसमे से आधा हिस्सा स्वयम और आधा हिस्सा पार्टनर के खाते में जमा होने लगा ,इसी समय उसने अपने भाई बहन और माँ को भी दिल्ली बुला लिया ,सम्पुरण परिवार मजे से रहने लगा ,अब दिल्ली में ही युवराज की शादी के प्रस्ताव आने लगे ,लोग शादी के हेतु पीछे पड़ने लगे ,शादी भी करनी जरुरी थी सो एक दिन युवराज ने लड़की पसंद करके शादी की हाँ कर दी ,कहते हैं की दिल्ली बड़ी रंगरंगीली है ,यहाँ पर जिसको एक बार कमाना खाना आ गया उसको फ़िर किसी चीज की परेशानी नहीं रहती ,सारे दिन काम में व्यस्त रहने के बाद शाम को वो कभी-कभी अपनी मंगेतर से मिलने उसके घर भी जाने लगा पर उन लोगो को वह अच्छा नही लगता था ,युवराज ये बात जल्दी ही भांप गया सो उसने उधर जाना बंद कर दिया ,नतीजा ये निकला की उसके जीवन में भटकाव सा आ गया ,
अचानक युवराज के जीवन में एक लड़की आ गयी उसके साथ प्यार की पेंग शुरू हो गयी ,साथ -साथ घूमना फिरना
पिक्चर देखना ,लॉन्ग सोर्ट ड्राइव पर जाना ,होटल्स में खाना खाना ,एक साथ जीने मरने की कसमे खाना आदि आदि यानी वो सभी कार्य जो एक अच्छे और खानदानी जोड़े कर सकते है यानी की मानमर्यादा का पूरी तरह ख़याल करके ,आख़िर एक दिन वो भी आ गया जब उस लडकी ने युवराज के साथ शादी करने का प्रस्ताव रख दिया ,हालाकि युवराज उस लडकी से शादी करना तो चाहता था पर उसके सामने दो मुसीबते थीं ,एक तो वो लड़की युवराज की बिरादरी की नही थी और ना ही वो किसी बहुत अच्छे खानदान से थी ,दूसरी समस्या थी वो मंगेतर ,मानो युवराज दुविधा में फंस गया था एक तरफ वचन दूसरी तरफ प्रेम ,अब करे तो क्या करे ,दोनों पक्षों में कोई भी छोड़ने को तैयार नहीं
पर युवराज ने अपने खानदान की खातिर अपनी मंगेतर से ही शादी करने का फैसला किया और उस लड़की के साथ अन्याय किया और यदि वो ऐसा ना करता तो उसके खानदान पर बट्टे के साथ -साथ गर्त में डालने का अ भियोग लगता जो उसको किसी भी तरह मंजूर नहीं था ,एक लड़की के प्यार की खातिर वो आने वाली जेनरेशन के साथ अन्याय नहीं कर सकता अगर वो ऐसा करता तो शायद आने वाली पीदीयाँ उसे कभी माफ़ नही करती और ना ही उसके भाई बहनों की शादियाँ अच्छे घरौं में होती और नाही बिरादरीमें कोई पूछता ,और एक दिन उसकी शादी गाजे बाजों के साथ एक अच्छे खानदान में हो गई ,शादी के कुछ दिन पूर्व ही युवराज के पिताजी का स्वर्गवास हो गया था इसलिए उनका आशीर्वाद तो विवाह में नहीं मिला पर माँ का आशीर्वाद अवश्य मिल गया था
शादी के कुछ समय बाद ही युवराज अपने बिजनेस में पूरी तल्लीनता से लग गया ,व्यापार और अच्छी तरह से चमक गया उसका हिस्सेदार भी उससे काफ़ी खुश था ,अब उसने अपनी बहन की शादी ,फ़िर छोटे भाई की शादी शानशौकत से राजाओं की तरह अच्छे खानदानों में कर दी ,उनकों अपने स्वर्गवासी पिता का अहसास ना होने दिया ,बड़े भाई होने के नाते पिता का फर्ज पूरा किया ,अभी तक पूरा परिवार युवराज को बहुत सम्मान देता था ,वो उनके मोह में पागल था ,दुनिया में उसको अपने परिवार और कमाने के शिवा कुछ नजर नहीं आता था यहाँ तक की वो अपनी बीबी तक को भी ख़ास तवज्जो नहीं देता था ,परिवार के सदस्य के मुंह से हर निकली बात उसे सत्य लगती थी जब की वास्तविकता कुछ और थी अब परिवार वालों ने युवराज के प्रति संयंत्र रचने शुरू कर दिए थे और घर में सबने अपनी -अपनी गांठ बनानी शुरू कर दी थी और युवराज को पता तक ना था
अब युवराज ने प्रोपर्टी ,मकान दूकान फेक्टरियाँ प्लोट्स लेने शुरू कर दिए और वो भी अपने दोनों भाइयों और माँ एवं स्वयम के नाम पर ,भगवान् की क्रपा थी ,पैसे का पता ना था कहाँ से आ रहा था कहाँ खर्च हो रहा था ,सभी लोग मज़े से जीवन बिता रहे थे ,उसी समय चुनाव भी आ रहे थे ,सो युवराज को लगा की यही समय है अपनी गरीबी के कलंक को धोने का ,और अपनी स्टेट की जनता को ये दिखाने का की हम अभी भी राजा ,हैं उसके लिए छोटे भाई को नेता बनानेकी ठान ली और उसे लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया ,यद्दपि चुनाव तो हार गए पर युवराज कई परिवार से गरीबी का कलंक धुल गया ,अब उसके क्षेत्र के बड़े -बड़े लोग उससे मिलने आने लगे ,पूरे क्षेत्र में उनका नाम हो गया ,जो लोग पानी की नहीं पूछते थे वो अब अपने घर बुलाकर दूध पिलाने लगे ,यद्दपि चुनाव में युवराज के बहुत रूपये खर्च हो गए थे पर उसको अपनी खोयी इज्जत वापस मिलने की बहुत खुशी थी ,एवं बीच वाला भाई नेता भी बन गया था ,इसी समय एक और फेक्ट्री लगाई वो भी बीच वाले भाई नेता के नाम कर दी ,युवराज को उसके हिस्सेदार ने काफ़ी समझाया पर उसके समझ ना आई इसी के कारण हिस्सेदार ने अपनी हिस्सेदारी ख़त्म कर दी ,अब युवराज की इच्छा शहर में एक बँगला बनाने की थी ,सो उसने उसके लिए भी बड़ा प्लाट लेकर बनवाना शुरू कर दिया इसी बीच में सबसे छोटे भाई की शादी भी तय हो गयी बहुत अच्छी फॅमिली थी ,उसकी शादी और भी धूमधाम से कर दी दो तीन वर्ष में बँगला बनकर तैयार हो गया उसमे भी बेहिसाब पैसा लग गया
जब हिसाब लगा कर देखा तो पता चला की युवराज लाखौं रुप्यौं का कर्जदार हो गया था ,क्योँ की कुछ समय से मार्किट में भी मंडे का दौर चल रहा था और दोनों भाई भी कोर्चा करने में संलग्न थे परन्तु युवराज को ये भरोसा था की वो जब भी भैयौं से अपना या अपने लिए रुपया मांगेगा तो उसके भाई मना नहीं करेंगे ,पर जब उनसे रुपया 

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