Tuesday, April 22, 2014

100% पाने का आसान नुस्खा



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कुछ वर्ष पुरानी बात है, महाराष्ट्र के डहाणू गांव में एक लड़की रहती थी, नाम था जान्हवी केळकर।

गुजरात सीमा से कुछ इधर समुद्र किनारे का यह कोई खास बड़ा गांव नहीं था। इसलिए गांव में कोई चमक-दमक वाला अंगरेजी मीडियम स्कूल भी नहीं था।

सीधी-सादी जान्हवी मराठी माध्यमिक विद्यालय में पढ़ती, आंगन में पारिजात के फूल चुनकर माला पिरोती, दादी के साथ मंदिर और मां के साथ हाथ में थैली लेकर बाजार जाती। शायद कभी सहेलियों के साथ बैट-फुद्दी खेलती हो यानी निपट घरेलू थी।

थोड़ी बड़ी होने के बाद जान्हवी मां के साथ कोचीन रहने चली गई। वहां वह बैडमिंटन खेलने लगी। इतना अच्छा खेलने लगी कि केरल की स्टेट चैंपियन बन गई। जान्हवी और बड़ी हुई और ग्यारहवीं में पहुंची।

स्कूल का महत्वपूर्ण वर्ष था। खूब पढ़ाई करनी पड़ती है। जान्हवी ने भी की। इतनी अच्छी की कि उसे फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ्स, सबमें सौ में से सौ अंक आए। 

मुंबई के यूडीसीटी (यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ कैमिकल टेक्नोलॉजी) में उसके पिताजी जब एडमिशन फॉर्म में उसके प्राप्तांक भर रहे थे तो वहां के क्लर्क ने उन्हें टोका और कहा- आपको पूर्णांक नहीं, प्राप्तांक लिखना है।

पिता ने कहा वही कर रहा हूं- सबमें सौ हैं। फॉर्म जमा करने बाद उन्होंने पूछा कि प्रवेश मिलने वाले छात्रों की सूची कब लगेगी? तो जवाब मिला कि और किसी का चुनाव हो न हो आपकी बेटी का जरूर होगा।

पढ़ाई खत्म होते-होते कैंपस में टाटा कंसल्टंसी के लोग आए और उन्होंने जान्हवी को चुन लिया। सालभर के अंदर ही गांव की यह लड़की इंग्लैंड चली गई विशेषज्ञ बनकर।

दो साल बाद पश्चिम से लौटी और पूर्व में जापान चली गई। टोकियो में उसने दो साल कैमिकल प्लांट्स का काम देखा न देखा और सिटी बैंक में अफसर बनकर कारोबारियों को रुपए-पैसे संभालने की सलाह देने लगी।

जब जान्हवी से पूछा गया कि इतनी अलग-अलग तरह की बातें तुम इतनी अच्छी तरह कैसे कर लेती हो? उसका जवाब था- आसान है। हर काम में पूरा मन लगाओ। पूरा ध्यान लगाओगे, पूरे अंक पाओगे- वन हंड्रेड पर्सेंट।  

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