आज देखा मैंने,
एक भिखारी,
हां,
आज ही,
अपनी इन्हीं आँखों
से,
धूमिल,
फटेहाल,
हाथ फैलाकर मांगता,
कुछ रुपये,
दूर जाती अपनी बच्ची
को,
पास बुलाता हर समय,
मेरा ह्रदय उदेव्लित
था,
संशय में भी था,
यदि मांग से वो
भिखारी है,
तो हम उससे बड़े
भिखारी है,
यदि पैसे के लिए वो
भिखारी है,
तो हम उससे बड़े
भिखारी है,
अब मैं मुस्कुरा उठा,
अब मुझे दुःख भी न
था,
क्यूंकि,
वो मुझसे अलग न था,
मुझे लगा की वहां
मेरा संगी बैठा है,
हां,
मेरा ही संगी,
क्यूंकि,
मै भी एक भिखारी ही
था,
मै भी.
No comments:
Post a Comment