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प्राचीनकाल से ही इंसान की इच्छा रही है कि वह मुक्त आकाश में उड़े। इसी इच्छा ने पतंग की उत्पत्ति के लिए प्रेरणा का काम किया। कभी मनोरंजन के तौर पर उड़ाई जाने वाली पतंग आज पतंगबाजी के रूप में एक रिवाज, परंपरा और त्योहार का पर्याय बन गई है।
भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में अनेक मान्यताएं और कहावतें प्रचलित हैं। हर जगह पतंग उड़ाने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित है और हर जगह के अपने-अपने तौर-तरीके हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक है आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना।
भारत में भी पतंग उड़ाने का शौक हजारों वर्ष पुराना हो गया है। कुछ लोगों के अनुसार
पवित्र लेखों की खोज में लगे चीन के बौद्ध तीर्थयात्रियों के द्वारा पतंगबाजी का
शौक भारत पहुंचा। भारत के कोने-कोने से युवाओं के साथ उम्रदराज लोग भी यहां आते हैं
और खूब पतंग उड़ाते हैं।
एक हजार वर्ष पूर्व पतंगों का जिक्र संत नाम्बे के गीतों में दर्ज
है।
मुगल बादशाहों के शासन काल में तो पतंगों की शान ही निराली थी। खुद बादशाह और
शहजादे भी इस खेल को बड़ी ही रुचि से खेला करते थे। उस समय तो पतंगों के पेंच
लड़ाने की प्रतियोगिताएं भी होती थीं।
हैदराबाद और लाहौर में पतंगबाजी की खेल बड़े उत्साह के साथ खेला जाता
था।
आज भी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली आदि में पतंग
उड़ाने के लिए समय निर्धारित है। अलग-अलग राज्यों में पतंगों को अलग-अलग नामों से
जाना जाता है।
उत्तर भारत के लोग रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस वाले दिन खूब पतंग उड़ाते हैं। इस
दिन लोग नीले आसमान में अपनी पतंगें उड़ाकर आजादी की खुशी का इजहार करते
हैं।
* पहले कागज को चौकोर काटकर पतंगें बनाई जाती थीं, किंतु आज एक से बढ़कर एक डिजाइन, आकार, आकृति एवं रंगों वाली भिन्न प्रकार की मोटराइज्ड एवं फाइबर ग्लास पतंगें मौजूद हैं। जिन्हें उड़ाने का एहसास अपने आपमें अनोखा और सुखद होता है।
दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के लोग इस दिन पतंगबाजी का जमकर
लुत्फ उठाते हैं। पतंग उड़ाते और काटते समय में छोटे-बड़े के सारे भेदभाव भूल जाते
हैं। इस दिन चारों तरफ वो काटा, कट गई, लूटो, पकड़ो का शोर मचता
है।
गुजरात की औद्योगिक राजधानी अहमदाबाद की बात करें तो भारत ही नहीं, यह पूरे विश्व
में पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है। हर वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति (उत्तरायण) के
अवसर पर यहां अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें अहमदाबादी नीला
आसमान इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो जाता है।
चीन, नीदरलैंड, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्राजील, इटली और चिली आदि देशों में भी
पतंगबाजों की फौज यहां आती है। यह पतंग महोत्सव 1989 से प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा
है। यहां एक पतंग म्यूजियम भी बना है।
* मलेशिया की वाऊबलांग, इंडोनेशिया की इयांग इन्यांघवे, यूएसए की विशाल वैनर, इटली की वास्तुपरक, जापान की रोक्काकू तथा चीन की ड्रैगन पतंगों की भव्यता लाखों पतंग प्रेमियों को आश्चर्य से अभिभूत कर देती है।
ग्रीक इतिहासकारों की मानें तो पतंगबाजी 2500 वर्ष पुरानी है, जबकि अधिकतर लोगों का
मानना है कि पतंगबाजी के खेल की शुरुआत चीन में हुई। चीन में पतंगबाजी का इतिहास 2
हजार साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है।
कुछ लोग पतंगबाजी को पर्शिया की देन मानते हैं, वहीं अधिकांश इतिहासकार पतंगों का
जन्म चीन में ही मानते हैं। उनके अनुसार चीन के एक सेनापति हानसीज में कागज को
चौकोर काटकर उन्हें हवा में उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश भेजा और बाद में कई रंगों
की पतंगें बनाईं।
आज भी चीन में पतंग उड़ाने का शौक कायम है। वहां प्रत्येक वर्ष सितंबर माह की 9
तारीख को पतंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चीन की लगभग समूची जनता पूरे
जोश और उत्साह के साथ पतंगबाजी की प्रतियोगिता में भाग लेती
है।
अमेरिका में तो रेशमी कपड़े और प्लास्टिक से बनी पतंगें उड़ाई जाती हैं। वहां जून
के महीने में पतंग प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है।
जापानी भी पतंगबाजी के शौकीन हैं। उनका मानना है कि पतंग उड़ाने से देवता प्रसन्न
होते हैं। वहां प्रति वर्ष मई के महीने में पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं आयोजित की
जाती हैं।
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