खाकी रंग के रोएं सिर और गर्दन पर होते हैं। पहाड़ी गिद्ध की लंबाई सामान्यतः 4 फुट होती है। नर और मादा दोनों एक समान दिखाई देते हैं। सिर और गर्दन पर हल्के रंग के रोएं होते हैं। पीठ का ऊपरी रंग भूरा होता है, जिस पर धारियां पड़ी रहती हैं।
हिमालय क्षेत्र में पहाड़ों पर आने-जाने वाले लोग पहाड़ी गिद्ध को अच्छी तरह पहचानते हैं। आकाश में काफी ऊंचाई पर उड़ते और चक्कर काटते हुए इस गिद्ध को कभी भी देखा जा सकता है। इसके पंख कड़े और पीठ एकदम सीधी होती है, इसी वजह से यह वायुयान की तरह दिखाई देता है।
अन्य गिद्धों की तरह इसके आराम करने की जगह भी निश्चित होती है, जो प्रायः किसी चट्टान के ऊपर अथवा पहाड़ के किसी ऊंचे स्थान होते हैं। यहां यह खाए हुए भोजन को पचाने के लिए बैठ जाता है। इनके बैठने के प्रिय स्थानों का प्रयोग सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है इसलिए इन जगहों पर बड़े-बड़े सफेद धब्बे 2-3 मील दूर से ही दिखाई देते हैं।
मरे हुए जानवरों के खाने के तुरंत बाद यह पास के पेड़ों पर जाकर बैठ जाते हैं और पाचन शुरू होते ही अपने विश्राम स्थलों की ओर मुड़ जाते हैं। इनका मुख्य भोजन मरे हुए पशुओं का सड़ा मांस है। यह कभी खुद शिकार नहीं करते। पहाड़ी गिद्ध सामान्यतः 4-6 जोड़े मिलकर किसी पहाड़ या जलमग्न चट्टान पर एक साथ अपने घोंसले बनाते हैं।
इनके घोंसले छोटी-छोटी टहनियों और घासफूस के बने होते हैं, जो देखने में बिलकुल भद्दे होते हैं। मादा एक समय में एक ही अंडा देती है, जो लंबा और नुकीला होता है। इन अंडों की औसत लंबाई 4 इंच होती है।
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