Tuesday, February 11, 2014

जंगल का देवता

एक दिन बादशाह अकबर के मन में आई कि क्यों न बीरबल को ही बुद्धू बनाया जाए। अपनी योजना पर अमल करते हुए उन्होंने एक ऐसा पिंजरा बनवाया, जो पहली नजर में बाहर से देखने पर कहीं से पिंजरे जैसा नहीं दीखता था। फिर बादशाह ने एक कश्मीरी सेब उस पिंजरे में रखवा दिया था और वहीं पिंजरे के पास छिप कर बीरबल का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद बीरबल वहां आ पहुंचा। उसने सेब पड़ा देखा तो उसे उठाने को हाथ बढ़ाया। जैसे ही हाथ सेब से छुआ कि पिंजरा बंद हो गया और बीरबल का हाथ उसमें फंस गया। तभी पर्दे के पीछे छिपे अकबर सामने आते हुए बोले, ‘‘अरे ! यह तुम हो बीरबल ! मेरे महल से बहुत सी छोटी-छोटी चीजें चोरी हो रही थीं। चोर को पकड़ने के लिए ही मैंने यह जाल बिछाया था। लेकिन तुम कैसे फंस गए इसमें ? तुम पर मुझे पूरा विश्वास है कि तुम चोर नहीं हो सकते। लेकिन आगे से ऐसा न करना।’’ फिर बादशाह मुस्कराते हुए आगे बढ़े और बीरबल का हाथ पिंजरे से मुक्त करा दिया। तब बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! मैंने यह बढ़िया कश्मीरी सेब यहां पड़ा देखा तो उसे उठाने को आगे बढ़ा। इसमें गलत कुछ भी नहीं, यह तो आदमी की फितरत है। सेब चुराने की मेरी कोई मंशा न थी।’’

तब बादशाह ने बीरबल से कहा कि जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाए और उसे सफाई देने की भी कोई जरूरत नहीं। लेकिन बीरबल बेहद शर्मिन्दगी महसूस कर रहा था। यह वाकया उसके दिलो-दिमाग से निकल ही नहीं रहा था।
बादशाह बीरबल की इस हालत का मजा लेने के लिए बीरबल से पूछते रहे ‘‘कहो बीरबल, पिंजरे में रखा सेब कैसा था ?’’
बादशाह के इन व्यंग्य बाणों को सुनकर बीरबल का दिल और भी छलनी हो जाता। वह सोचता रहता कि इस हालत से छुटकारा कैसे पाया जाए। आखिरकार उसे एक उपाय सूझ ही गया। एक दिन बादशाह का मन हुआ कि शिकार के लिए जंगल में जाया जाए। यूं तो बीरबल भी अकबर के साथ जाया करता था, लेकिन उस दिन वह जानबूझकर गायब हो गया और बादशाह को अकेले ही जाना पड़ा। जंगल में शिकार की तलाश करते हुए अकबर काफी भीतर तक सुनसान में चले गए। इधर रात ढलने को थी, तभी उनके कानों में गरजती तेज आवाज सुनाई दी, ‘‘रुको ! कौन हो तुम ? घोड़े से नीचे उतरो...जल्दी।’’

बादशाह ने पीछे मुड़कर देखा कि आवाज देने वाला कौन है तो उन्हें एक बड़े पेड़ के नीचे शरीर पर शेर की खाल लपेटे एक आदिवासी खड़ा दिखाई दिया।
उसके हाथ में लाठी थी। बादशाह ने उससे बचकर निकलने का प्रयास किया और आगे बढ़ने लगे। तभी वह आदिवासी अपनी लाठी जमीन पर पटकता हुआ चिल्लाया, ‘‘तुम अभी तक घोड़े पर सवार हो...उतरे क्यों नहीं ? मैं इस जंगल का देवता हूं, तुम्हें मेरी आज्ञा माननी ही होगी।’’
अब बादशाह डर गए। घोड़े से उतरे और जंगल के देवता का अभिवादन किया। वह बोले ‘‘ओ जंगल के देवता ! मैं यहां इस जंगल में शिकार खेलने आया था, यह जंगल मेरे राज्य की सीमा के भीतर है। लेकिन अब मैं यहां से जाना चाहता हूं।’’
कहकर वे जैसे ही जाने को तैयार हुए तो जंगल का वह देवता बोला, ‘‘ठहरो ! तुमने मेरे इलाके में मेरी इजाजत के बिना प्रवेश किया है। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।’’
बादशाह अब और भी डर गए। बोले, ‘‘सुनो देवता ! मुझे बख्श दो। यह सब अनजाने में हुआ है।’’

‘‘यदि ऐसा हुआ है तो तुम्हें कड़ी सजा नहीं मिलेगी। दूर उस पेड़ को देख रहे हो न तुम ? उस पेड़ तक दौड़ते हुए जाओ, साथ में यह बोलो, ‘जंगल के राजा का हुक्म है’।’’
बादशाह ने वैसा ही किया जैसा करने को कहा गया था। इसके बाद वह वापस महल में लौट आए।
उनकी समझ में अब तक यह नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ ? वे तो पहले भी कई बार शिकार खेलने उस जंगल में जा चुके थे।
अगले दिन, जब बीरबल रोज की तरह दरबार में आया तो बादशाह बोले, ‘‘कहो बीरबल ! सेब कैसा था ?’’
‘‘वैसा ही जैसा जंगल का देवता था।’’ बीरबल ने तुरंत जवाब दिया। बादशाह हैरान रह गए कि बीरबल को कैसे पता चला कि बीती रात जंगल में उनके साथ क्या हुआ था। हैरानी भरे स्वर में बोले अकबर, ‘‘बीरबल ! तुम्हें जंगल के देवता के बारे में कैसे पता चला ?’’
बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! मुझे रात को सपना आया था और उस सपने में ही मुझे जंगल के देवता के बारे में पता चला।’’ जब कि वास्तविकता याह थी कि जंगल का देवता और कोई नहीं वेश बदले हुए बीरबल ही था। मजाक का बदला उसने मजाक करके ही लिया था।
उसी दिन से बादशाह ने बीरबल का मजाक बनाना छोड़ दिया।

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