|
|
मच्छर परिवार बहुत परेशान था। दिन पर दिन महंगाई बढ़ती जा रही थी और परिवार के सब प्राणी अब तक बेरोजगार थे। आखिर मांग-मांग कर कब तक गाड़ी खिचती। फिर कोई कब तक किसी को देता रहेगा।
मच्छरी ने अपने पति को सलाह दी कि 'क्यों न कोई धंधा चालू कर दिया जाए, बैठे-बैठे कौन खिलाएगा। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। दस बच्चों को मिलाकर हम लोग बारह लोग हैं, धंधा करेंगे तो घर के सब लोग ही व्यापार संभाल लेंगे और नौकरों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।'
'सलाह तो तुम्हारी उचित है परंतु कौन-सा धंधा करें, धंधे में पूंजी लगती है जो हमारे पास है नहीं - मच्छर बोला।
'ऐसे बहुत से धंधे हैं जिसमें थोड़े-सी पूंजी में ही काम चल जाता है। क्यों न हम पान की दुकान खोल लें। पूंजी भी नहीं लगेगी। सुबह थोक सामान ले आएंगे और शाम को बिक्री में से उधारी चुका देंगे।' - मच्छरी ने तरीका सुझाया।
ग्राहक आते खुद तो पान-तंबाकू खाते
ही, मच्छर पुत्रों को भी प्रेरित करते। आखिरकार एक-एक कर मच्छर के दसों पुत्र
स्वर्गवासी हो गए। मच्छर ने गुस्से के मारे दुकान बंद कर दी।
आखिर उसके बच्चों की मृत्यु के जबाबदार इंसान ही तो थे, क्योंकि उनकी प्रेरणा से ही भोले-भाले बच्चे तंबाकू खाना सीखे थे।
ऐसा सोचकर मच्छर ने खुले आम घोषणा कर दी कि आगे से मच्छर अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए कोई काम नहीं करेंगे सिर्फ आदमियों का खून चूसेंगे। तब से आज तक मच्छर इंसानों का खून चूस रहा है।
आखिर उसके बच्चों की मृत्यु के जबाबदार इंसान ही तो थे, क्योंकि उनकी प्रेरणा से ही भोले-भाले बच्चे तंबाकू खाना सीखे थे।
ऐसा सोचकर मच्छर ने खुले आम घोषणा कर दी कि आगे से मच्छर अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए कोई काम नहीं करेंगे सिर्फ आदमियों का खून चूसेंगे। तब से आज तक मच्छर इंसानों का खून चूस रहा है।
No comments:
Post a Comment